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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2677
आईएसबीएन :0

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हिन्दी काव्य का इतिहास

प्रश्न- मध्यकालीन हिन्दी सन्त काव्य परम्परा का उल्लेख करते हुए प्रमुख सन्तों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

उत्तर -

(1) कबीरदास - -कबीर सन्त मत के प्रमुख एवं प्रतिनिधि कवि है। इनकी रचनाओं की सर्वातिशायी विशिष्टता के आधार पर इन्हें सन्त मत का प्रवर्तक स्वीकार किया जाता है। कबीर की रचनाओं को प्रमाणिक संग्रह डॉ. श्यामसुन्दर दास द्वारा सम्पादित कबीर ग्रन्थावली और डॉ. रामकुमार वर्मा द्वारा सम्पादित सन्त कबीर है। कबीर पंथियों के लिए कबीर की रचनाओं का प्रमाणिक ग्रन्थ बीजक है। पर्यटनशील कबीर की भाषा अनेक बोलियों के शब्दों के लिए होने के कारण पंचमेल खिचड़ी बन गयी है। उनके काव्य का मुख्य प्रतिपाद्य निर्गुणसत्ता के प्रति ज्ञान पूर्ण भक्ति निवेदन है। कबीर की भक्ति के आलम्बन के निर्गुण होने के कारण कबीर की भक्ति में रहस्यात्मकता का पुट आ गया है।

कबीर ने अपने समय में प्रचलित अंधविश्वासों और रूढ़ियों में ग्रस्त समाज को सुधारने का बोझ उठाया। उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम वैमनस्य तथा जाति-पाँति के भेदभाव को मिटाने का पूरा प्रयत्न किया है इस प्रकार कबीर की कविता बहुद्देशीय बनकर प्रस्तुत हुई है। कबीर के महत्व का प्रतिपादन करते हुए आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का कथन है- "साधना के क्षेत्र में वे युग-पुरुष थे और साहित्य के क्षेत्र में भविष्य द्रष्टा, सच्चे कर्मयोगी होने के कारण वे युग-गुरु थे। उन्होंने सन्त काव्य के प्रदर्शन के लिए साहित्य क्षेत्र में नव निर्माण का कार्य किया था। उनके समकालीन एवं परवर्ती सभी सन्त कवियों ने उनकी वाणी का अनुकरण किया। हिन्दू-मुस्लिम ऐक्य की जो विचारधारा आज इतनी प्रबल हो उठी है, उसके मूल प्रवर्तक कबीर ही थे।"

(2) रैदास - निम्न वर्ग में समुत्पन्न होकर भी उत्तम जीवन शैली उत्कृष्ट साधना पद्धति तथा उल्लेखनीय आचरण के कारण रैदास अथवा रविदास का नाम भारतीय धर्म साधना के क्षेत्र में बड़े ही आदर के साथ लिया जाता है। डॉ. भगवत व्रत मिश्र ने अपने शोध के आधार पर रविदास का जन्मकाल सन् 1398 और मृत्युकाल 1448 ई. सिद्ध किया है। उनकी चमार जति एवं व्यवसाय का समर्थन स्वयं उनकी अपनी उक्तियों से होता है। यथा ऐसी मेरी जाति विख्यात चमार' 'चरन सरन रैदास चमइया आदि।

रविदास के मूलतः सन्त होने के कारण - उनके लिए कला की अपेक्षा प्रतिपाद्य विषय ही अधिक महत्वपूर्ण रहा है। ब्रह्म को अनुभूति का विषय मानते हुए रविदास उसकी सत्ता और स्वरूप की अभिव्यक्ति में अपनी असमर्थता प्रकट करते हैं और इसके साथ ही वे उस निर्गुण ब्रह्म को एक सुनिश्चित रूप देने के लिए उसके समस्त रूपों में ऐक्य और अभेद का वर्णन करते हैं। रविदास मूर्ति पूजा, तीर्थयात्रा आदि बाह्य विधानों का विरोध कर आन्तरिक साधना पर बल देते हैं।

रविदास ने अपने भावों और विचारों की अभिव्यक्ति के लिए सरल, व्यावहारिक ब्रजभाषा को अपनाया है, जिसमें अवधी, राजस्थानी, खड़ी बोली और उर्दू, फारसी के शब्दों का भी मिश्रण है। उपमा, रूपक आदि अलंकारों का सहज प्रयोग रविदास की कला की विशेषता है। उनकी काव्य शैली के परिचार्थ निम्नलिखित उद्धरण दृष्टव्य है :

अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी।
प्रभु जी तुम चन्दन हम पानी, जाकी अंग अंग बास समानी।

(3) नानकदेव - लाहौर के निकट तलवण्डी गाँव में जन्मे नानकदेव समन्वयशील और उदार प्रकृति के व्यक्ति थे। उनमें संगठन शक्ति, क्षमाशीलता और दूरदर्शिता जैसे अद्भुत गुण विद्यमान थे। भ्रमणशील नानकदेव की विभिन्न धर्मावलम्बियों से भेंट होते रहने के कारण उनके चिन्तन में उदारता, सहिष्णुता तथा व्यावहारिकता का समावेश हो गया था। उनके काव्य में जहाँ निर्गुण ब्रह्म के प्रति उच्चकोटि की भक्ति भावना विद्यमान है, वहाँ अन्य धार्मिक विचारधाराओं के प्रति उच्चकोटि का समादर का भाव मिलता है। सत्य के प्रति आस्था के फलस्वरूप उनकी वाणी में स्पष्टता और उद्बोधन की प्रखरता मिलती है।

नानकदेव के अनेक पद 'गुरुग्रन्थ साहिब' में संकलित है। उनकी 38 छन्दों एवं एक श्लोक की रचना 'जपुजी' नामक दर्शन का सार तत्व है। उनका अधिकांश साहित्य पंजाबी में है किन्तु उन्होंने ब्रजभाषा शब्दावली का भी प्रयोग किया है। प्रवाह और सहजता उनकी भाषा के गुण है। विभिन्न राग-रागनियों में रचित उनके पदों में शान्त रस की अखण्ड पयस्विनी अपनी मधुर मंथन गति से प्रवाहित हो रही है। इनके द्वारा प्रवर्तित 'नामक पन्थ' एक व्यापक और सशक्त संगठन है। ऐतिहासिक वर्णनों में करुण रस एवं श्रृंगार के पद भी विरचित है। नानक के अनुसार ईश्वर कृपा से तत्त्व दर्शन तो हो जाता है, किन्तु उस अनुभव की अभिव्यक्ति सदैव नहीं हो पाती। यथा - आपे

जाणै आपे देई, आखहि सि भि केई केई।
जिसने बखसे सिफति सालाह, नामक पातिसाही पातिसाहु ॥

(4) दादू दयाल - दादू पन्थ के प्रवर्तक सन्त दादू दयाल के बहुमुखी व्यक्तित्व - धर्म सुधारक, समाज-सुधारक, रहस्यवादी कवि के कारण मध्यकालीन धर्म साधना में उनका विशिष्ट स्थान है। उनके जन्म और जाति सम्बन्धी तथ्य मतभेद का विषय रहे हैं। रज्जबदास के अनुसार दादू दयाल धुनिया परिवार में समुत्पन्न मुसमलान थे। देश के भ्रमण के पश्चात् दादू सन् 1573 में साँभर (राजस्थान) में निवास करने लगे। इसी समय उन्होंने पन्थ स्थापना का विचार किया। नियमित सत्संग होने लगा और इनका सम्प्रदाय भी निश्चित रूप ग्रहण करने लगा। प्रारम्भ में इस सम्प्रदाय का नाम 'ब्रह्म समाज' था फिर इसका नाम 'परब्रह्म सम्प्रदाय' पड़ा और अन्ततः वह 'दादू- पन्थ' के रूप में प्रख्यात हुआ। दादू के शिष्यों में रज्जबदास, सुन्दरदास तथा जगजीवन आदि थे जिन्होंने इस सम्प्रदाय को व्यापक एवं लोकप्रिय बनाने में बड़ा योगदान दिया।

दादू दयाल प्रतिभा सम्पन्न कवि थे। उनके द्वारा बीस सहस्र पदों और साखियों के रचित होने की बात कही जाती है किन्तु उनमें अभी बहुत कम उपलब्ध है। उनकी विचारधारा कबीर से प्रभावित है। दादू किसी मतवाद की उलझन में नहीं पड़े। निर्गुण भक्त कवि होने पर भी एक तो उन्होंने ईश्वर सगुण स्वरूप को मान्यता दी है, दूसरे भक्ति को सहज भाव से अंगीकार किया है। उनकी भाषा सरल और बोधगम्य ब्रजभाषा में समान रूप से आज और गाम्भीर्य के दर्शन होते हैं।

(5) मलूकदास - मलूकदास का आविर्भाव अकबर के समय तथा महाप्रस्थान और औरंगजेब के समय में हुआ। मलूकदास की रचनाओं में 'ज्ञानबोध' सबसे महत्वपूर्ण है। इसमें निर्गुण ब्रह्म की अन्तरसाधना, भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, निवृत्ति, प्रवृत्ति आदि का पांच खण्डों में वर्णन है। मलूकदास ने अवधी और ब्रजभाषा में काव्य रचना की है। कवि ने संस्कृत, फारसी तथा अन्य बोलियों के शब्दों का भी प्रयोग किया है।

(6) सुन्दरदास - सन्त दादू के शिष्यों में प्रमुख सुन्दरदास सन्त कवियों में अपवाद रूप से सुशिक्षित विद्वान थे। इनकी 42 रचनाओं में 'ज्ञानसमुद्र' और 'सुन्दरविलास अत्यन्त प्रसिद्ध है। उनकी रचनाओं में भक्ति, योग साधना और नीति को प्रधान स्थान प्राप्त हुआ। सुन्दरदास श्रृंगार रस की रचनाओं के कट्टर विरोधी थे और भक्ति-जनित आनन्द को अनुपम तथा विलक्षण मानते थे।

परिष्कृत ब्रजभाषा का प्रयोग, अलंकारों का सुनियोजन विन्यास और छन्दों का विशुद्ध तथा विविधता पूर्ण प्रयोग सुन्दरदास को अन्यतम से पृथक करने वाली कतिपय प्रमुख विशेषताएँ हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- इतिहास क्या है? इतिहास की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी साहित्य का आरम्भ आप कब से मानते हैं और क्यों?
  3. प्रश्न- इतिहास दर्शन और साहित्येतिहास का संक्षेप में विश्लेषण कीजिए।
  4. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व की समीक्षा कीजिए।
  5. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के सामान्य सिद्धान्त का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  7. प्रश्न- साहित्य के इतिहास दर्शन पर भारतीय एवं पाश्चात्य दृष्टिकोण का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का विश्लेषण कीजिए।
  9. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का संक्षेप में परिचय देते हुए आचार्य शुक्ल के इतिहास लेखन में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन के आधार पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  11. प्रश्न- इतिहास लेखन की समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की समस्या का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की पद्धतियों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  13. प्रश्न- सर जार्ज ग्रियर्सन के साहित्य के इतिहास लेखन पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  14. प्रश्न- नागरी प्रचारिणी सभा काशी द्वारा 16 खंडों में प्रकाशित हिन्दी साहित्य के वृहत इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  15. प्रश्न- हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रारम्भिक तिथि की समस्या पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- साहित्यकारों के चयन एवं उनके जीवन वृत्त की समस्या का इतिहास लेखन पर पड़ने वाले प्रभाव का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  17. प्रश्न- हिन्दी साहित्येतिहास काल विभाजन एवं नामकरण की समस्या का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन आप किस आधार पर करेंगे? आचार्य शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास का जो विभाजन किया है क्या आप उससे सहमत हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
  19. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास में काल सीमा सम्बन्धी मतभेदों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  21. प्रश्न- काल विभाजन की प्रचलित पद्धतियों को संक्षेप में लिखिए।
  22. प्रश्न- रासो काव्य परम्परा में पृथ्वीराज रासो का स्थान निर्धारित कीजिए।
  23. प्रश्न- रासो शब्द की व्युत्पत्ति बताते हुए रासो काव्य परम्परा की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए - (1) परमाल रासो (3) बीसलदेव रासो (2) खुमान रासो (4) पृथ्वीराज रासो
  25. प्रश्न- रासो ग्रन्थ की प्रामाणिकता पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  26. प्रश्न- विद्यापति भक्त कवि है या शृंगारी? पक्ष अथवा विपक्ष में तर्क दीजिए।
  27. प्रश्न- "विद्यापति हिन्दी परम्परा के कवि है, किसी अन्य भाषा के नहीं।' इस कथन की पुष्टि करते हुए उनकी काव्य भाषा का विश्लेषण कीजिए।
  28. प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  29. प्रश्न- लोक गायक जगनिक पर प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
  33. प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षित परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  34. प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
  35. प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
  36. प्रश्न- विद्यापति की भक्ति भावना का विवेचन कीजिए।
  37. प्रश्न- हिन्दी साहित्य की भक्तिकालीन परिस्थितियों की विवेचना कीजिए।
  38. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के उदय के कारणों की समीक्षा कीजिए।
  39. प्रश्न- भक्तिकाल को हिन्दी साहित्य का स्वर्णयुग क्यों कहते हैं? सकारण उत्तर दीजिए।
  40. प्रश्न- सन्त काव्य परम्परा में कबीर के योगदान को स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- मध्यकालीन हिन्दी सन्त काव्य परम्परा का उल्लेख करते हुए प्रमुख सन्तों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  42. प्रश्न- हिन्दी में सूफी प्रेमाख्यानक परम्परा का उल्लेख करते हुए उसमें मलिक मुहम्मद जायसी के पद्मावत का स्थान निरूपित कीजिए।
  43. प्रश्न- कबीर के रहस्यवाद की समीक्षात्मक आलोचना कीजिए।
  44. प्रश्न- महाकवि सूरदास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की समीक्षा कीजिए।
  45. प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
  46. प्रश्न- भक्तिकाल में उच्चकोटि के काव्य रचना पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- 'भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  48. प्रश्न- जायसी की रचनाओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  49. प्रश्न- सूफी काव्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  50. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए -
  51. प्रश्न- तुलसीदास कृत रामचरितमानस पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  52. प्रश्न- गोस्वामी तुलसीदास के जीवन चरित्र एवं रचनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
  54. प्रश्न- कबीर सच्चे माने में समाज सुधारक थे। स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  57. प्रश्न- हिन्दी की निर्गुण और सगुण काव्यधाराओं की सामान्य विशेषताओं का परिचय देते हुए हिन्दी के भक्ति साहित्य के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- निर्गुण भक्तिकाव्य परम्परा में ज्ञानाश्रयी शाखा के कवियों के काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
  59. प्रश्न- कबीर की भाषा 'पंचमेल खिचड़ी' है। सउदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- निर्गुण भक्ति शाखा एवं सगुण भक्ति काव्य का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  61. प्रश्न- रीतिकालीन ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक पृष्ठभूमि की समीक्षा कीजिए।
  62. प्रश्न- रीतिकालीन कवियों के आचार्यत्व पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
  63. प्रश्न- रीतिकालीन प्रमुख प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिए तथा तत्कालीन परिस्थितियों से उनका सामंजस्य स्थापित कीजिए।
  64. प्रश्न- रीति से अभिप्राय स्पष्ट करते हुए रीतिकाल के नामकरण पर विचार कीजिए।
  65. प्रश्न- रीतिकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों या विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  66. प्रश्न- रीतिकालीन रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रमुख कवियों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार दीजिए कि प्रत्येक कवि का वैशिष्ट्य उद्घाटित हो जाये।
  67. प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  68. प्रश्न- रीतिबद्ध काव्यधारा और रीतिमुक्त काव्यधारा में भेद स्पष्ट कीजिए।
  69. प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य विशेषताएँ बताइये।
  70. प्रश्न- रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
  71. प्रश्न- रीतिकाल के नामकरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  72. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्य के स्रोत को संक्षेप में बताइये।
  73. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्यिक ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  74. प्रश्न- रीतिकाल की सांस्कृतिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।
  75. प्रश्न- बिहारी के साहित्यिक व्यक्तित्व की संक्षेप मे विवेचना कीजिए।
  76. प्रश्न- रीतिकालीन आचार्य कुलपति मिश्र के साहित्यिक जीवन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  77. प्रश्न- रीतिकालीन कवि बोधा के कवित्व पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- रीतिकालीन कवि मतिराम के साहित्यिक जीवन पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- सन्त कवि रज्जब पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  80. प्रश्न- आधुनिककाल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
  81. प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  82. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
  83. प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
  84. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों की सोदाहरण विवेचना कीजिए।
  85. प्रश्न- भारतेन्दु युगीन काव्य की भावगत एवं कलागत सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- भारतेन्दु युग की समय सीमा एवं प्रमुख साहित्यकारों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  87. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य की राजभक्ति पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य का संक्षेप में मूल्यांकन कीजिए।
  89. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन गद्यसाहित्य का संक्षेप में मूल्यांकान कीजिए।
  90. प्रश्न- भारतेन्दु युग की विशेषताएँ बताइये।
  91. प्रश्न- द्विवेदी युग का परिचय देते हुए इस युग के हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  92. प्रश्न- द्विवेदी युगीन काव्य की विशेषताओं का सोदाहरण मूल्यांकन कीजिए।
  93. प्रश्न- द्विवेदी युगीन हिन्दी कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
  94. प्रश्न- द्विवेदी युग की छः प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
  95. प्रश्न- द्विवेदीयुगीन भाषा व कलात्मकता पर प्रकाश डालिए।
  96. प्रश्न- छायावाद का अर्थ और स्वरूप परिभाषित कीजिए तथा बताइये कि इसका उद्भव किस परिवेश में हुआ?
  97. प्रश्न- छायावाद के प्रमुख कवि और उनके काव्यों पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- छायावादी काव्य की मूलभूत विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  99. प्रश्न- छायावादी रहस्यवादी काव्यधारा का संक्षिप्त उल्लेख करते हुए छायावाद के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  100. प्रश्न- छायावादी युगीन काव्य में राष्ट्रीय काव्यधारा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  101. प्रश्न- 'कवि 'कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जायें। स्वच्छन्दतावाद या रोमांटिसिज्म किसे कहते हैं?
  102. प्रश्न- छायावाद के रहस्यानुभूति पर प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- छायावादी काव्य में अभिव्यक्त नारी सौन्दर्य एवं प्रेम चित्रण पर टिप्पणी कीजिए।
  104. प्रश्न- छायावाद की काव्यगत विशेषताएँ बताइये।
  105. प्रश्न- छायावादी काव्यधारा का क्यों पतन हुआ?
  106. प्रश्न- प्रगतिवाद के अर्थ एवं स्वरूप को स्पष्ट करते हुए प्रगतिवाद के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  107. प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- प्रयोगवाद के नामकरण एवं स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए इसके उद्भव के कारणों का विश्लेषण कीजिए।
  109. प्रश्न- प्रयोगवाद की परिभाषा देते हुए उसकी साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  110. प्रश्न- 'नयी कविता' की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  111. प्रश्न- समसामयिक कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों का समीक्षात्मक परिचय दीजिए।
  112. प्रश्न- प्रगतिवाद का परिचय दीजिए।
  113. प्रश्न- प्रगतिवाद की पाँच सामान्य विशेषताएँ लिखिए।
  114. प्रश्न- प्रयोगवाद का क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
  115. प्रश्न- प्रयोगवाद और नई कविता क्या है?
  116. प्रश्न- 'नई कविता' से क्या तात्पर्य है?
  117. प्रश्न- प्रयोगवाद और नयी कविता के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
  118. प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता तथा उनके कवियों के नाम लिखिए।
  119. प्रश्न- समकालीन कविता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

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